जाति व्यवस्था पर कई दशकों से प्रहार हो रहा है। होना भी चाहिए। क्योंकि जाति-संप्रदाय के नाम पर कथित राजनेता और संत-समाज सुधारक अपने निहित स्वार्थ के तहत जो घिनौना खेल खेलते हैं,उससे निजात पाने के लिए जाति मुक्त समाज की स्थापना अति आवश्यक है। लेकिन ऐसा नहीं है कि जाति व्यवस्था के उद्भव के मूल में समाज के विभाजन की सोच छिपी हुई थी। भारतीय जनसंघ के संस्थापक और एकात्म मानववाद के प्रणेता स्वर्गीय दीनदयाल उपाध्याय कहा करते थे कि जाति प्रथा का उद्भव समाज के निरंतर विकास के क्रम में हुआ था। प्राचीन हिंदू वांग्मय में वर्ण व्यवस्था का जिक्र तो है,लेकिन जाति व्यवस्था का नहीं तैत्तिरीय ब्राह्मण (३.१२.९.२) में कहा गया हैं -
"सर्वं तेजः सामरूप्य हे शाश्वत।
सर्व हेदम् ब्रह्मणा हैव सृष्टम्
ऋग्भ्यो जातं वैश्यम् वर्णमाहू:
यजुर्वेदं क्षत्रियस्याहुर्योनिम् ।
सामवेदो ब्रह्मणनाम् प्रसूति
अर्थात ऋगवेद से वैश्य, यजुर्वेद से क्षत्रिय और सामवेद से ब्राह्मण का जन्म हुआ। इस आधार पर ये भी मन जा सकता हैं कि अथर्ववेद का सम्बन्ध शूद्रों से हैं। जिस प्रकार कोई भी ज्ञानवां व्यक्ति किसी भी वेदों को दुसरे से ऊपर नहीं मान सकता उसी प्रकार उनसे जुड़े वर्ण भी एक दुसरे से ऊपर नहीं हो सकते।
अब फिर वापस आते हैं। उपाध्याय जी की बात पर। दरअसल ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ण के लोगों के कर्म एक ही थे। ब्राह्मणों का कार्य समाज को शिक्षित प्रशिक्षित करना था। क्षत्रियों का कार्य समाज की सुरक्षा करना और प्रशासिनक व्यवस्था को संभानलना था।लेकिन शूद्र, जिन्हें मैं शिल्पकार कहना बेहतर समझता हूं,वे अलग-अलग विधाओं में दक्षता हासिल करते थे और समाज को अपना अद्भुत योगदान देते थे। कोई लकड़ी के काम में निष्णात होता था तो कोई लोहे के काम में।सो उनके बच्चे भी घर में हो रहे काम में अपने माता-पिता की मदद करते-करते दक्ष हो जाते।
इस तरह से धीरे-धीरे उनकी एक कम्युनिटी विकसित होने लगी। ठीक वैसे ही जैसे आज ट्रेड यूनियन बन जाती है। लोग अपनी ही कम्युनिटी में में शादी ब्याह करने लगे। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि ज्यादातर पुत्र अपने पिता के कार्य में पारंगत होकर उसी को चुन लेते थे। उनकी पुत्रियां भी उस कार्य में पारंगत हो जाती थीं। इससे अपनी कम्युनिटी में शादी ब्याह करने पर काम काज में तो सुविधा होती ही थी।नई वधू को भी मायके जैसा माहौल मिलता था और वह खुद को एडजस्ट करने में कोई दिक्कत नहीं पाती थी। इसी तरह ब्राह्मणों की कम्युनिटी भी बन गईं। अब आप सोचें कि यदि किसी ब्राह्मण की कन्या किसी क्षत्रिय घऱ में ब्याह कर आ जाती और अपने तरुण पति को युद्ध के लिए प्रयाण करते देखती तो यही कहती कि हे प्राणनाथ,छोड़ो आप युद्ध में क्यों जाते हो। हम भिक्षा मांग कर जीवन यापन कर लेंगे। जबकि क्षत्रिय कन्या अपने पति को अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित करती। कहती, विजय प्राप्त कर आना। मैं प्रतीक्षा करूंगी। क्योंकि वह मायके में यही देखती आई थी कि जब उसके पिता रणभूमि में जाते थे तो मां उनको सजाती थीं। सो इस तरह वर्णों के भीतर जातियों का अभ्युदय का क्रम शुरू हो गया, जो कालांतर में इतना मजबूत हो गया िक उपजातियां अस्तित्व में आ गईं। मेरे कहने का तात्पर्य मात्र इतना ही है कि जातियों का अभ्युदय तत्कालीन समाज की आवश्यकता थी, जो स्वतः स्फूर्त थी। और इसी व्यवस्था के तहत भारतीय समाज हजारों सालों से प्रगति के मार्ग पर चलता रहा। आज इसका दुरुपयोग हो रहा है तो वह इस व्वयस्था का दोष नहीं है। हां आज की स्थितियां भिन्न हो गई हैं। इसलिए जाति व्यवस्था पर प्रहार कर उसका खात्मा जरूरी हो गया है। लेकिन हमें इसका भी ध्यान रखना होगा कि हम विकल्प में क्या व्यवस्था देंगे और क्या भविष्य में उसका दुरुपयोग नहीं होगा।
रविवार, 28 जून 2009
सोमवार, 22 जून 2009
छोटी सी लव स्टोरी में कई ट्विस्ट
छोटी सी लव स्टोरी। लेकिन ढेरों ट्विस्ट। इजहार,तकरार,इनकार और इकरार। आगे क्या होगा? हरियाणा के पूर्व उप मुख्य़मंत्री चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद अपनी दूसरी बीवी अनुराधा बाली उर्फ फिजा के कदमों में यूं ही बिछे रहेंगे? या फिर कुछ फिर से कुछ दिन बाद फिजा को तलाक देने का एलान कर देंगे। यह सवाल तब भी उठा था, जब उप मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने हरियाणा की अतिरिक्त महाधिवक्ता अनुराधा बाली से ब्याह रचाया था। तब भी यह बात उन लोगों के गले के नीचे नहीं उतरी थी, जो दोनों के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थे। इसीलिए जब चंद्रमोहन दो महीना बीतने से पहले ही अनुराधा को छोड़ कर चले गए तो लोगों को इसमें जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ था। तब सबने यही कहा था कि यह तो होना ही था। दरअसल, दोनों को करीब से जानने वालों का दावा है कि दोनों के बीच में प्यार हो न हो, पर भरोसा कतई नहीं है। यह बात तब सच साबित हो गई, जब चांद अपनी फिजा को छोड़कर चले गए। तब फिजा ने उन पर तमाम तरह के लांछन लगाते हुए चंद्रमोहन के सालों पुराने एसएमएस और प्रेम पत्र सार्वजनिक कर दिए। जाहिर है कि कहीं न कहीं उनके मन में आशंका जरूर रही होगी तभी तो उन्होंने उसे सहेजा कर रखा था। दूसरी तरफ चंद्रमोहन को भी यह जानते हुए भी इससे उप मुख्यमंत्री का पद चला जाएगा, उनसे ब्याह रचाने की कौन सी जल्दी पड़ी थी। और जब ब्याह कर ही लिया, धर्म छूट गया, परिवार छूट गया, पद चला गया तो छोड़ क्यों दिया। छोड़ ही नहीं दिया, तमाम सारे आरोप भी लगा दिए। दरअसल, इन सारे सवाल के जवाब उनके लिए बहुत आसान हैं, जो दोनों से जुड़े रहे हैं। चंद्रमोहन जहां एक उच्छृंखल युवराज की तरह हैं, वहीं अनुराधा बेहद मह्त्वाकांक्षी। अनुराधा को लगा कि उनकी मह्त्वाकांक्षा बजरिए चंद्रमोहन पूरी हो सकती है तो चंद्रमोहन को लगा कि अनुराधा उनके मतलब की चीज हैं। दोनों एक दूसरे के कई साल करीब रहे। अनुराधा अधिवक्ता थीं। सो उन्होंने चंद्रमोहन और अपनी अंतरंगता के कुछ सुबूत भी तैयार कर लिए। वह शराब के बाद चंद्रमोहन की दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी बन गईं। लेकिन जब चंद्रमोहन को लगा कि कहीं अनुराधा के पास सुरक्षित सुबूत उनके लिए खतरा न बन जाएं तो उन्होंने अनुराधा से ब्याह का प्रस्ताव रख दिया। यहां अनुराधा अपनी नारी सुलभ कोमलता के कारण मात खा गईं और दोनों ने मजहब बदल कर शादी कर ली। तब उन्होंने यह नहीं सोचा कि इस्लाम में तलाक सबसे ज्यादा आसान है। शादी के बाद उनके सुबूत बेमायने हो जाएंगे। और चंद्रमोहन जब चाहेंगे तलाक देकर फि्र अपने घर वापस लौट जाएंगे। हुआ भी वही। पर चंद्रमोहन एक चूक कर गए। अनुराधा के घऱ से निकलने के बाद जब वह विदेश गए तो चंद्रमोहन के नाम वाले पासपोर्ट पर ही। अनुराधा ने इसकी शिकायत कर दी। इसमें चंद्रमोहन सजा पा सकते हैं। कोई ताज्जुब नहीं कि अनुराधा पैरवी करतीं तो सजा भी हो जाती। फिर चुनाव लड़ने भी लायक नहीं रहते। सो, एक हफ्ते पहले तक फिजा को जिंदगी का काला अध्याय बताने वाले चंद्रमोहन रविवार 14 जून को सुबह फिजा के घर पहुंच गए। उनसे बेपनाह मोहब्बत का दावा करते हुए माफी मांगने लगे। रात नौ बजे बालकनी में उन्हें बाहों में लिए हुए यह एलान करते नजर आए कि फिजा ने हमें माफ कर दिया है। हालांकि अनुराधा ने माफी की बात पर तो हामी भरी पर यह भी साफ कर दिया कि अपनी शिकायतों को बगैर सोचे-विचारे वापस नहीं लेंगी। वैसे भी अनुराधा ने चंद्रमोहन के छोड़ जाने के बाद भी यही कहा था कि चांद उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकते। उनके भाई कुलदीप ने उनका अपहरण कराया है। चंद्रमोहन ने अनुराधा के पास लौटने के बाद इसे स्वीकार भी किया। यह बात अलग है कि पहले उन्होंने कहा था वह बच्चे नहीं हैं कि कोई उनका अपहरण कर ले। बहरहाल, यह सब पुरानी बाते हैं। हम तो यही दुआ करेंगे फिजा ताजिंदगी चांद से रोशन होती रहें। वैसे भी चांद ने उन्हें छोड़ा था। उन्होंने नहीं। तभी तो मलेशिया जाने के लिए अपना पासपोर्ट बनवाया तो अपना नाम फिजा और पति का नाम चांद मोहम्मद लिखवाया। चंद्रमोहन के चले जाने के बाद मीडिया के जरिए जो ख्याति और सहानुभूति उन्हें मिली,वह उसे भुनाने से भी नहीं चूकीं। फिल्मों में काम करने के आफऱ तक मिले। टीवी के एक रियलिटी शो में ही भाग लेने मलेशिया जा रही हैं। अब क्या? अब तो दोनों हाथ में लड्डू है। चांद भी मिल गया और ख्याति भी। लेकिन चंद्रमोहन न घर के रहे न घाट के। फिजा अब उन पर भरोसा करेंगी नहीं और अब तो घर वापसी की भी सारी संभावनाएं खत्म हो गईं।
रविवार, 21 जून 2009
अपनों का दुःख
गंगादास जी की कार अपनी अपने दफ्तर के सामने रुकी ही थी कि बल्लू दादा की बोलेरो के ब्रेक चरमराए। गंगादास के दिल में गालियों की गंगा बहने लगी। साला वसूली करने आ गया। अभी चुनाव से पहले तो आधी पेटी लेकर गया था। लेकिन अपने दिल के भावों को बाहर नही आने दिया। चेहरे पर मुस्कराहट चिपकानी ही थी। सो चिपका ली। उनकी मुस्कराहट वैसी ही लग रही थी, जैसे उनका डिनर का आमंत्रण स्वीकार करते समय उनकी स्टेनो की होती है । बोले, बल्लू भाई चलो, भीतर बैठते हैं। और दोनों भीतर बने वातानुकूलित कमरे में चले गए। सोफे पर पसरते हुए बिल्लू दादा ने कहा, सेठ तुम अपन का आदमी है। तुम्हें मालुम है भाई इस बार चुनाव हार गए हैं। साला हम लोगों ने टिकट के लिए ही मादाम को पूरे सौ पेटी दिए थे। हालांकि मादाम की गलती नहीं, वह तो भाई को गरीबों का मसीहा भी बोल गई। पर भाई नही नहीं जीते। पूरे पांच सौ पेटी खर्च कर भी नहीं जीते। साला विधानसभा में दो सौ बूथ होते हैं। सत्तर-अस्सी कैपचर कर लेते थे। रही सही कसर बिरादरी वाले वोट देकर पूरी कर देते थे। पर लोकसभा मे कैपचरिंग हो नहीं पाई और बिरादरी वाले भी दगा दे गए। अब इस हाल में अपनों से ही मदद मांगी जा सकती है। भाई ने बोला है, ज्यादा नहीं आधी पेटी दे दो बस। बिल्लू के शब्द गंगा दास को यों लगे जैसे टायसन ने कलेजे पर घूसा जड़ दिया हो। बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला। आखिर उन्हे अकसर इस तरह की दुश्वारियों से दो-चार होना पड़ता था। थोड़ी दबी आवाज में बोले, बल्लू भाई देखो। भाई ने जो पिछला ठेका दिलवाया था, उसका पेमेंट अटक गया है। अखबार वालों ने हंगामा खड़ा कर दिया था कि हमने बाढ़-पीड़ितों को चावल सपलाई ही नहीं किया है,सारे कागजात फरजी लगाए है। अब जांच अधिकारी क्लीन चिट देने के आधी पेटी मांग रहा है। कहता है मार्च में मुख्यमंत्री जी का जनमदिन है। अभी से जोड़ रहा हूं, हमें भी नौकरी करनी है। गंगादास ने बल्लू के चेहरे पर कुछ इस तरह निगाह डाली, जैसे अपनी गुगली पर एलबीडब्लू की अपील कर रहे हों। लेकिन बल्लू ने उनकी अपील को बेरहमी से ठुकरा दिया, देखो सेठ यह भाई का हुक्म है। बाकी तुम जानो। गंगादास ने देखा कि गुगली कारगर नहीं रही तो सीधे लेगब्रेक फेंक दी। बल्लू दादा भाई तो भगवान हैं। राम हैं। आप उनके हनुमान हो। और हम हनुमान के भक्त हैं। कुछ तो सोचो। बल्लू ने सोचा, मक्खन इसी लिए महंगा हो गया है, लोग खाएं कहां से। सारा तो लगाने में खर्च हो जाता है। पर सेठ की बात अच्छी लगी। बल्लू बल्ले-बल्ले हो गए। बियर का आचमन कर मुंह में चिप्स रखते हुए बोले, सेठ चल तू पैंतीस दे दे। हालांकि ऐसा होगा नहीं पर खुदा न खास्ता कभी भाई पूछ ले तो कहना पचीस दिए थे। दस मै रख लूंगा। साला रेप वाले केस को सेटल करने के लिए अपोजीशन वाले लीडर को देना है। तू अपन का बड़ा भाई है। अपन सोचेगा तेरे बारे में। भाई को बोलेगा। कोई नया -काम दिलवाओ। देख भाई चुनाव भले हार गए हों, लेकिन अब हैं तो सत्तारूढ़ पार्टी में। अपन का, अपन के लोगों का जितना भी नुकसान हुआ है। सब वसूल कर लेंगे। चिंता मत करो, सब भरपाई हो जाएगी। हां उस जांच करने वाले अफसर को मै फोन कर दूंगा पचीस ले ले लेगा। गंगादास के चेहरे पर चमक आ गई। बल्लू को विदा करने बाहर निकल कर सड़क तक आए। ठीक है, दादा शाम को माल पहुंच जाएगा। बल्लू दादा की नीली झंडी लगी बोलेरो में बैठे आधा दर्जन बंदूकधारी छोकरे बियर की खाली बोतलें सीट के नीचे डाल अलर्ट हो चुके थे। गाड़ी के गेट खुले। बल्लू दादा अगली सीट पर विराजमान हुए और बोलेरो स्टार्ट हो गई।
अब बहाना नहीं
बहुत दिनों के बाद आज ब्लाग पर हूं। अब कोशिश होगी कि नियमित रूप से रहूं। ऐसा वादा हालांकि मैं पहले भी कर चुका हूं। लेकिन खरा नहीं उतर पाया। इस बार कोशिश होगी कि अब ऐसा न हो। इसका एक कारण यह भी था कि अभी तक ब्लागिंग के लिए मेरे पास अपना कंप्यूटर या लैपटाप नहीं था। लेकिन अब मैंने लैपटाप खरीद लिया है। इसलिए यह बहाना भी नहीं चल पाएगा। तो इस बार बस इतना ही। कल आप सबसे लंबी बात करूंगा।
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