गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

टीम जीते कैसे भी जीते

कल यानी कि सत्रह अक्टूबर से यहां मोहाली में हो रहे दूसरे क्रिकेट टेस्ट मैच में भारतीय टीम की भिडंत आस्ट्रेलियन टीम से होगी। इसके पहले दोनों बंगलुरू में पहले टेस्ट में भिड़ चुकी हैं। यद्यपि वहां मुकाबला बराबरी पर छूटा था, लेकिन वास्तविकता यही थी कि आस्ट्रेलियाई टीम हम पर भारी पड़ी थी। अंतिम पारी में सौरभ गांगुली ने विलंब की रणनीति अपनाई और अपनी टीम को हार से बचाने में सफल रहे। यह बात अलग है कि इसके लिए उन्हें आस्ट्रेलियाई मीडिया की आलोचना का शिकार होना पड़ा। सौरभ की विलंबित रणनीति से खिसियाए आस्ट्रेलियाई मीडिया को कौन बताए कि सकारात्मक क्रिकेट का मतलब आपको तश्तरी में जीत परोसना नहीं होता है। सौऱभ ने सकारात्मक क्रिकेट ही खेला। उन्होंने अपनी टीम पर हार के आसन्न खतरे को टाला। क्या सौरभ आउट होकर चले आते तो वह सकारात्मक क्रिकेट होता? यहां सौरभ की इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने अपनी टीम को बचाया। अन्यथा जितना उन्हें अपमानित किया गया उतना शायद ही कोई क्रिकेट खिलाड़ी हुआ हो। वह भी तब जब कि सौरभ ने अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट जीवन के दौरान भारतीय टीम को आक्रामक टीम के रूप परिवर्तित कर उसके भीतर जीत का जज्बा पैदा किया। हालांकि ऐसा करने वाले वह पहले कप्तान नहीं थे। कपिल देव उसके पहले यह प्रक्रिया प्रारंभ कर चुके थे। लेकिन उसे परवान चढ़ाने वाले गांगुली ही थे। वह भी ऐसे समय में जब भारतीय टीम का मनोबल काफी गिरा हुआ था। सौरभ ने भारतीय खिलाड़ियों ने टीम भावना विकसित की। और यह जान लें कि जिस टीम में टीम भावना नहीं होगी, वह कभी जीत नहीं सकती। भले ही उसमें कितने ही दिग्गज क्यों न शामिल हों। महाभारत का उदाहरण लें। कौरव हर दृष्टि से पांडवों से ज्यादा मजबूत थे। उनकी सैन्यशक्ति अधिक थी। गुरु द्रोण, भीष्म पितामह और इन सबसे बढ़कर कर्ण ऐसे योद्धा थे, जिनकी जोड़ का योद्धा पांडव पक्ष में कोई नहीं था। खुद दुर्योधन का उस समय गदायुद्ध में कोई जोड़ नहीं था। लेकिन इन सबके भीतर टीम भावना नहीं थी। द्रोण को टीम से अधिक पुत्र प्यारा था, यह जानते हुए भी कि उसे कोई मार नहीं सकता उसके मरने का समाचार सुनते ही होश खो बैठे। भीष्म पितामह को अपना प्रण प्यारा था, टीम की जीत नहीं। वह जानते थे कि शिखंडी पूर्व जन्म में स्त्री था, इस जन्म में नहीं। और यह भी जानते थे कि उसके पीछे अर्जुन छिप कर प्रहार कर रहे हैं। लेकिन अपना प्रण पूरा करने के लिए अस्त्र-शस्त्र रख बैठे। कर्ण को पता था कि उसका कवच-कुंडल मांगने वाले इंद्र हैं। लेकिन उनकी दानवीरता पर आंच न आए, इसलिए अपने कवच और कुंडल कर्ण ने इंद्र को सौंप दिए। दूसरी तरफ टीम हित में युधिष्ठर ने झूठ बोला। कुंती ने कर्ण की मां होने का राज खोला। अर्जुन ने निहत्थे कर्ण को मारा। भीम ने दुर्योधन को कमर से नीचे प्रहार कर मारा, जबकि गदा-युद्ध में कमर से नीचे प्रहार वर्जित है। खुद दुर्योधन अंतिम रात जिस तालाब में छिपा था उसमें रहने वाली यक्षिणी उसपर मोहित थी। उसने दुर्योधन से मात्र एक रात्रि के लिए प्रणय-निवेदन किया था। बदले में प्रातः उसकी सारी सेना को पुनर्जीवन देने का वचन। कृष्ण को यह बात पता थी। इसी लिए युधिष्ठर के यह कहने पर कि सूर्यास्त हो चुका है और अब नियमानुसार युद्ध नहीं हो सकता, वह नहीं माने। वह पांडवों को लेकर दुर्योधन के पैरों के निशान के सहारे उस तालाब के किनारे पहुंचे और पांडवों से कहा कि दुर्योधन को युद्ध के लिए ललकारें। भीम ने ललकारना शुरू किया। दुर्योधन पर मोहित यक्षिणी ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन दुर्योधन भी टीम हित भूल गया। क्योंकि उसके लिए टीम हित बाद में था क्षत्रीत्व पहले। उसने यह कह कर उसका प्रणय-निवेदन ठुकरा दिया कि क्षत्रिय किसी की ललकार को नहीं सुन सकता। परिणाम यह निकला कि कमजोर होते हुए भी पांडव टीम जीत गई और मजबूत होते हुए भी कौरव हार गए। क्योंकि कौरवों के लिए व्यक्तिगत प्रदर्शन महत्वपूर्ण था, टीम की जीत नहीं। जीत हासिल करने वाले सिर्फ जीत चाहते हैं। उनकी टीम जीते। कैसे भी जीते। उन्हें यश मिले या अपयश इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सौरभ ने यही तो किया। कोई लाख टिप्पणी करे लेकिन उन्होंने अपनी टीम को हार से तो बचा ही लिया।

6 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

पंडितजी प्रणाम , आज आपने ऐसा लेख लिखा है की अच्छे २ लिक्खाडौ की छुट्टी कर दी ! बेहतरीन लेख बेहतरीन नजीर के साथ ! जितनी प्रसंशा की जाए, वो कम है ! बहुत शुभकामनाएं !

ताऊजी ने कहा…

बहुत शानदार लेख है सर जी ! गजब लिखा है ! धन्यवाद!

भूतनाथ ने कहा…

दुर्योधन पर मोहित यक्षिणी ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन दुर्योधन भी टीम हित भूल गया। क्योंकि उसके लिए टीम हित बाद में था क्षत्रीत्व पहले। उसने यह कह कर उसका प्रणय-निवेदन ठुकरा दिया

पर ये यक्षिणी तो दुर्योधन दादा के साथ ऊपर मुझे कई बार मिल चुकी है ! आप कहे तो आपको भी मिलवा दू ? पर क्रिकेट के बारे में आपने शानदार लिखा है !

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

बहुत जोरदार लेख लिखा है आपने ! और इसके साथ २ महाभारत के उदाहरण इस लेख को अतुलनीय बना रहे हैं ! बहुत मजा आया ! तिवारी साहब का सलाम !

Smart Indian ने कहा…

त्रिपाठी जी, बहुत सुंदर लिखा है आपने. साथ ही महाभारत काल से आज तक हमें पीछे धकेलने वाले सार्वभौमिक सत्यों का बड़ा सटीक सन्दर्भ दिया है, धन्यवाद!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

बढ़िया ही नहीं बहुत बढ़िया त्रिपाठी जी
सामयिक व सटीक चिंतन
बधाई