बुधवार, 22 अक्तूबर 2008
बहुत दुखदायी होता है किसी अपने का चले जाना
कुछ लोग जहनी तौर पर बचपन में बुजुर्ग हो जाते हैं। सामाजिक सरोकार, नैतिकता, संवेदनशील विवेकधर्मिता जैसी तमाम बातें उनके किरदार में इस कदर समा जाती हैं कि उनसे ज्यादा उम्र के लोग उनके सामने बच्चे लगते हैं। दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के स्थानीय संपादक प्रभात जी ऐसे ही लोगों में से एक हें। मैं उन्हें पिछले आठ सालों से जानता हूं। और उनके बेहद करीबी होने का दावा भी करता हूं। मेरे एक मित्र हैं प्रवीण शेखर। प्रवीण भी मेरी तरह हैं। हम दोनों स्वाभावतः बच्चे हैं। हर तरह की बातें आपस में सांझा करना और जरा-जरा सी बात पर विचलित होकर रोने लगना हम दोनों के स्वाभाव में है। और हम दोनों ही प्रभात भाई साहब से मन की गहराइयों से जुड़े हैं।लेकिन हम दोनों जहां छोटी-छोटी बात पर विचलित हो जाते हैं। वहीं आज तक प्रभात भाई साहब को विषम से विषम परिस्थितियों में भी विचलित होते नहीं देखा। अभी दो दिन पहले बीस अक्टूबर को उनके पिता जी( जो मेरे लिए बाबू जी थे ) का निधन हो गया। बाबू जी की उम्र बमुश्किल ६६-६७ रही होगी। मुझे जब .यह जानकारी मिली तो प्रभात भाईसाहब चंडीगढ़ से कार से अपने घर बरेली के लिए निकल चुके थे। मैं जानता था कि उनपर क्या बीत रही होगी। मैं उनसे फोन पर बात करने का साहस भी नहीं जुटा सका। जो मुश्किल से मुश्किल हालात में मुझे सांत्वना देता रहा हो, उसे मैं क्या दिलासा दूं। हालांकि मैं जानता हूं कि किसी अपने का चले जाना कितना दुखदायी होता है। जिनकी उंगली पकड़कर चलना सीखा हो। जिन्होंने पूरी ईमानदारी और शिद्दत के साथ वह सबकुछ हमें हासिल कराने की कोशिश की हो, जो वह अपने बचपन में खुद नहीं कर पाए थे, उनका हमें छोड़कर चले जाना ताउम्र का दुख दे जाता है। मेरे पिता जी का निधन हुआ था तो उसके सालों बाद तक कहीं किसी शब्द के मायने पर फंसता था या किसी जानकारी को मुकम्मल करना होता था तो मन में तुरंत यह बात उठती थी घर पर पहुंच कर पिता जी से पूछूंगा। लेकिन तभी विचारों को झटका लगता था कि पिताजी तो बहुत दूर जा चुके हैं। और इसके साथ ही पलकें गीली हो जाती थीं। उनके निधन के चार साल बाद माता जी भी उन्हीं के पास चली गईं। इसके लगभग आठ साल के बाद मेरा प्रभात जी से परिचय हुआ। फिर एक दिन जौनपुर जाना हुआ जहां उनकी माता जी और पिता जी अपने गांव गए हुए थे। भौदेपुर नामक उस गांव में जहां अम्मा-बाबू जी थे जाकर उनसे मिला तो लगा कि जिंदगी में मां-बाप के न होने से जो खालीपन आ गया था, उसकी काफी हद तक भरपाई हो गई है। उसके बाद तो जब भी अम्मा-बाबू बरेली से जौनपुर आते मेरा वहां जाना खुद के लिए एक जरूरत बन गया था। घर पहुंचते ही बाबू जी विह्वल हो जाते। अम्मा को बुलाते। अरे जगदीश आए हैं। अम्मा आतीं छाती से छपटा लेतीं। अभी दो जुलाई को बरेली में दोनों के आशीष लेकर आया था। अभी हाल ही में बाबू जी को चोट लगी थी । उनका आपरेशन हुआ था। जाना चाहता था.। लेकिन नहीं जा पाया। प्रवीण इलाहाबाद से उन्हें देखने बरेली गए थे। तब बात हुई थी। मैंने सोचा था कि अगले हफ्ते चला जाऊंगा। बदनसीब रहा मैं। उनकी अंतिम यात्रा में भी शामिल नहीं हो सका। आज प्रवीण को फोन लगाया। फोन बंद था। सोचा है कि अब शुद्ध वाले दिन जाऊँगा। प्रवीण को भी आने के लिए बोलूंगा। कुछ देर साथ में रो लेंगे। बस इंतजार है प्रवीण के फोन का।
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17 टिप्पणियां:
आपकी पोस्ट से मालुम हुवा ! आपके बाबूजी स्वरुप पुण्यात्मा का चले जाना बड़ा ही ह्रदय विदारक है ! ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे और घरवालो को इस दुःख को सहन करने की ताकत दे ! यही प्रार्थना है !
bahut dardnak hota hai apano ka chala jana ! shok sanvedanaaen !
इस दर्दनाक मौके पर मेरी हार्दिक संवेदनाये प्रगट करता हूँ ! इश्वर दिवंगत आत्मा को शान्ति दे और परिवार जनों को यह शोक सहन करने की हिम्मत दे !
आपके पिता जी और आपके बीच के सम्बन्ध मुझे ख़ुद अपने पिता जी की याद दिला गए मैं भी उनकी बड़ी कमी अनुभव करता हूँ !
" oh it is really very very painful to loose some one..... and the fact is that no one can fulfill that loss. will pray to god to give you and family courage to bear this pain and peace to the soul"
Regards
इस दुखद क्षण में हम आपके और प्रभात जी के साथ हैं!
मुझे आज ही पता चला आप के बाबुजी, भाइ इस दुख के समय हमे अपने साथ समझे, भगवान उन्हे अपने चरणो मै जगह दे, ओर उन की आत्मा को शान्ति मिले ओर आप सब परिवार जनो को इस दुःख को सहन करने की ताकत दे !कुछ समय पहले ही मै भी अपने पिता जी को खो आया हू, आप सब हिम्मत रखे......
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
जानकर दुःख हुआ ..धीरज रखें ...
.. आपने कहा साप्ताहिक नौटंकी लिखने को मैंने लिख दिया ..देख के राय जाहिर करें
परिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
पिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
ऒह
मैं तो उलाहना लेकर आया था कि २७ को आपने बहुत प्रतीक्षा करवाई
पर
यहां मामला ही कुछ और निकला
प्रवीण भाई को सांत्वना दें
आप भी स्वयं को संभाले
हालांकि मैं जानता हूं कि यह सब कहना आसान है
बहरहाल मुझे अपने दुख में शामिल समझें
शेष ठीक
दीवाली तो हर साल आ जाती है
फिर कभी मना लेंगें
आमीन......
किसी अपने का चले जाना कितना दुखदायी होता है।....आपके इस पोस्ट ने भावुक कर दिया.इस दर्द को वही समझ सकता है ,जिसने असमय अपने किसी अजीज को खोया हो . ।
Is dunia ka ek din sabko chale jana hai, yahi shashwat satya hai. Bawjud iske apno ka jana bahut salta hai. hum chahe nati-poto wale ho jaye, lekin jab tak hamare mata-pita jivit hote hain, hum bache hi rahte hain. unke jane ke bad jindgi mein khalipan sa rahta hai. dua karte hain bhagwan parbhat ji, jagdish ji, parveen ji aur sabhi ristedaro ko is dukh ki ghari mein sahanshakti de.
जगदीश जी कैसे हैं आप? बहुत दिन से कोई हाल-चाल, ख़बर-खैरियत नहीं मिली. नव-वर्ष की शुभकामनाएं!
तिवारी जी तो लगता है भूतनाथ की ससुराल में चले गये आप तो लौट आइये भाईजान...
jaldi kuchh aur bhi likhiye blog par
ईश्वर की कृपा है मुझपर....अभी तक किसी अपने के जाने का दर्द नहीं देखा ... पर समझ सकती हूं इस कष्ट को.....आखिर पूरी दुनिया में भी तो अपने ही भरे पडे हैं....उन्हें रोते चिल्लाते देखती हूं तो दिल भर आता है... भगवान आपको और प्रभात जी को इस दुख को सहने की शक्ति दे और दिवंगत आत्मा को शांति भी।
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