बुधवार, 22 जुलाई 2009

इंसाफ का तराजू

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की गूंज पर देश में सुनाई दे रही है। बात ही कुछ ऐसी ह। एक विक्षिप्त किशोरी का गर्भपात कराए जाने को देश की सबसे बड़ी अदालत ने रोक दिया। जिस खंडपीठ ने यह फैसला दिया उसमें मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि किशोरी के बच्चे का पालन पोषण कुदरत करेगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर देश भर में एक बहस छिड़ गई है। इस केस में हाईकोर्ट से चंडीगढ़ प्रशासन से किशोरी के गर्भपात की इजाजत मांगी थी। वह भी किशोरी के मानसिक और शारीरिक बेहतरी के लिए। पूरी नेकनीयती के साथ। हाईकोर्ट में तमाम बहस-मुबाहिसे के बाद इजाजत मिल गई थी। हाईकोर्ट में क्या-क्या हुआ, इसके पहले यह जानना जरूरी है कि यह किशोरी है कौन ? किशोरी सन २००५ में चंडीगढ़ के सेक्टर-२६ थाने के पुलिस जवानों को सड़क पर मिली थी। वे उसे थाने ले गए। वहां से उसे एसडीएम के समक्ष पेश किया गया। एसडीएम के आदेश पर उसे नारी निकेतन भेज दिया गया। तब से युवती वहीं पर थी। अभी हाल ही में वहां से उसे निराश्रितों के लिए बनाए गए एक अन्य स्थल आश्रय में लाया गया। आश्रय में एक दिन उसकी तबीयत बिगड़ गई तो इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज में दाखिल हुई। वहां चिकित्सकों ने जांच में पाया कि वह लगभग दस हफ्ते के गर्भ से है। इसके बाद प्रशासन के हाथ पांव फूल गए। क्योंकि आश्रय और नारी-निकेतन दोनों का प्रबंधन और संचालन प्रशासन ही करता है। जाहिर था कि किशोरी के साथ बलात्कार हुआ था। गर्भ के समय से यह भी साफ था कि उन दिनों किशोरी नारी निकेतन में थी। पुलिस में प्राथमिकी दर्ज हुई। पूछताछ में किशोरी ने बताया कि नारी निकेतन में एक महिला उसे चौकीदार के पास ले जाती थी। पुलिस ने भूपेंद्र नाम के उस चौकीदार को गिरफ्तार कर लिया और उसका डीएनए टेस्ट कराने के लिए सैंपल भी ले लिए। जिस महिला के बारे में संदेह था, वह अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट चली गई। प्रशासन ने किशोरी की मानसिक स्थित को देखते हुए उसका गर्भपात कराने का फैसला लिया। बाद में कोई बखेडा़ न हो इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों ने गर्भपात की इजाजत के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अर्जी दी। चूंकि यह अपनी तरह का अनोखा मामला था, इसलिए हाईकोर्ट ने इस केस में राय देने के लिए एक वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा को अपना सहयोगी ( एमिक्स क्यूरी) नियुक्त किया और हरियाणा व पंजाब के महाधिवक्ता से भी कोर्ट में अपने विचार देने के लिए कहा।इस केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पुलिस की धीमी कार्रवाई पर जम कर फटकार लगाई। आरोपित महिला की अग्रिम जमानत याचिका भी हाई कोर्ट ने खारिज कर दी.।हाईकोर्ट में प्रशासन के अधिवक्ता अनुपम गुप्ता ने कहा कि किशोरी को मां बनने का अहसास तक नहीं है.। उसे रिश्तों के बारे में नहीं पता। ममता का उसे बोध नहीं। उसे इस पर दुख नहीं होता कि उसके साथ बलात्कार हुआ, बल्कि वह इससे दुखी होती है कि उसके कपड़े फट गए। उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति को देखते हुए यही बेहतर होगा कि गर्भपात करा दिया जाए। इस पर हाईकोर्ट ने पूछा भी कि ऐसी स्थिति में प्रशासन को इजाजत लेने की क्या जरूरत थी। इस पर गुप्ता ने कहा कि बाद में कोई बखेड़ा न हो, इसलिए अदालत की इजाजत लेना बेहतर समझा गया।हरियाणा के महाधिवक्ता हवा सिंह हुड्डा ने भी अदालत में राय दी कि कल्याणकारी राज्य होने के नाते प्रशासन को किशोरी के हित में गर्भपात की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। पंजाब के महाधिवक्ता एचएस मत्तेवाल का भी मत था कि मानवीय आधार पर गर्भपात की इजाजत दे देनी चाहिए। लेकिन एमिक्स क्यूरी चीमा की राय इसके विपरीत थी। उनका कहना था कि किशोरी चाहती है तो उसे बच्चे को जन्म देने दिया जाए। गौरतलब है कि पीजीआई के चिकित्सकों की काउंसिलिंग के दौरान किशोरी ने बच्चे को जन्म देने की इच्छा जताई थी। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद प्रशासन को एक मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश दिया। इसमें बतौर सदस्य हाईकोर्ट ने अपनी प्रतिनिधि के रूप में चंडीगढ़ की जिला एवं सेशन न्यायाधीश राज राहुल को गर्ग को भी रखा। बोर्ड को किशोरी की मानसिक और शारीरिक स्थिति की जांच करने के बाद यह राय देनी थी कि गर्भपात उसके हित में है या नहीं। और गर्भपात कराया ही जाना है तो उसे बोर्ड के सदस्यों की देखरेख में कराया जाना चाहिए था। बोर्ड की रिपोर्ट आने के बाद एक बार फिर बहस हुई।प्रशासन के वकील अनुपम गुप्ता ने मनोचिकित्सकों की राय का हवाला देते गर्भपात के समर्थन में जोरदार तर्क दिए। लेकिन उतनी ही मजबूती से एमिक्स क्यूरी चीमा की तरफ से उनकी जूनियर तनु बेदी ने भी गर्भपात के विरोध में बहस की। तनु ने कहा कि मां की मानसिक विकलांगता गर्भपात का आधार नहीं हो सकती। उन्होंने तमाम भावनात्मक मुद्दे भी उठाए। बोर्ड के सदस्यों, मनोचिकित्सकों और जानकारों की राय तथा अन्य तथ्यों व बहस में दिए गए तर्कों के आधार पर हाईकोर्ट ने पाया कि गर्भपात ही किशोरी के हित में है और उसने गर्भपात की इजाजत दे दी। इसके खिलाफ कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी और वहां से हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया गया। शायद यह देश का पहला बच्चा होगा जो देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश पर जन्म लेगा। लेकिन विडंबना तो यह है कि उस बेचारे की मां विक्षिप्त होगी और बाप जेल में होगा। उसका बाप कौन है, यह जानने के लिए तो फिलहाल २२ लोगों के डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट का इंतजार है।

5 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अत्यंत दिल को कचोटने वाला मामला है. प्रशासन अपने को बचाने मे लगा हुआ था..अत्यंत निंदनिय कृत्य है.

रामराम.

सुंदरदास ने कहा…

सुप्रीम कोर्ट तो सिर्फ हथियारों के सौदागरों के बेटे नंदाओं की फिक्र है या फिर धारा 377 पर ताली बजाने बाले @##$%$ की

सुप्रीम कोर्ट या और भी किसी अदालत को आम आदमी की कोई परवाह नहीं है इसीलिये अदालत और वकील दोनों शब्द आज गाली बन गये हैं

संगीता पुरी ने कहा…

क्‍या बन गयी है यह दुनिया !!

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

बहुत अजीब सा मामला है ये | गर्भपात करना उचित है या नहीं, ये कहना बहुत मुश्किल है |

अच्छा वर्णन किया है आपने, लेख का प्रवाह भी बढिया है, इसको यदि २-३ पारा मैं विभाजित कर लिखा जाता तो कैसा रहता ?

रवि धवन ने कहा…

गर्भ में पल रही नन्ही जान को बचाकर सुप्रीम कोर्ट ने बेशक सही निर्णय दिया है...मगर घर घर में आज बेटियों को बचाने के लिए कहाँ से लायें इतने सारे सुप्रीम कोर्ट.