शनिवार, 23 अगस्त 2008

अभी समय है चेत जाइए

दिल्ली में मैथिली-भोजपुरी अकादमी की स्थापना पहले ही की जा चुकी है.अब ज्यों-ज्यों विधानसभा चुनाव निकट आते जा रहे हैं,त्यों-त्यों मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भोजपुरी व मैथिली कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति भी सुनिश्चत कर रही हैं.साथ ही यह भी सगर्व उद्घोषित कर रही हैं कि वह भी उन्हीं के बीच की हैं.यद्यपि ऐसा है नहीं.शीला दीक्षित पीहर के पक्ष से पंजाबी हैं तो ससुराल के पक्ष से अवधी.इसके निहितार्थ स्पष्ट हैं.दिल्ली में बड़ी संख्या में रहने वाले बिहारियों का मत विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिले.लेकिन एक बात समझ में नहीं आती.मुख्यमंत्री को तो राजनीति करनी है.उन्हें अपने लिए,अपने दल के लिए बिहारियों का मत चाहिए.पर क्या बिहारियों का भला इन अकादमी जैसे टोटकों से होगा.या मैथिली अथवा भोजपुरी का विकास तभी होगा जब तक उन्हें अकादमी जैसी बैसाखी नहीं मिलेगी? मैथिली तो भाषा की श्रेणी में आती है.उसकी अपनी लिपि है.अपना व्याकरण है. लेकिन भोजपुरी को हम भाषा कैसे कह सकते हैं.भोजपुरी हिंदी की एक बोली है.जैसे अवधी,ब्रज,बुंदेलखंडी,हरियाणवी,राजस्थानी आदि हैं.ध्यान दें कि उत्तर प्रदेश में हिंदी अकादमी तो है लेकिन अवधी अकादमी नहीं.हरियाणा में हिंदी अकादमी है लेकिन हरियाणवी अकादमी नहीं.जहां तक मेरी जानकारी है बिहार में भी भोजपुरी अकादमी नहीं है.फिर जब दिल्ली में मुख्यमंत्री मैथिली भोजपुरी अकादमी बना सकती हैं,तो हरियाणवी अकादमी क्यों नहीं.क्या बुराई है म्हारी हरियाणवी में,दिल्ली तीन तरफ से हरियाणा से घिरी है.दिल्ली में बड़ी संख्या में हरियाणवी रहते हैं.फिर दिल्ली सारे देश की राजधानी है तो वहां हर भाषा की अकादमी होनी चाहिए.और भाषा ही क्यों हर बोली की.देश में १६१८ बोलियां हैं.लेकिन ऐसा नहीं होगा.क्योंकि इन बोलियों को बोलने वाले लोग दिल्ली में मतदान करते समय अपना मत प्रदेश भाषा या बोली के आधार पर नहीं देते.यह इन लोगों का गुण है या अवगुण.यह राजनेताओं को तय करना है.और इसे भोजपुरी-मैथिली लोगों को भी तय करना है.उन्हें बिहार के ही मगध क्षेत्र के लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए,जिनकी भाषा मगही है.लेकिन उनकी तो कोई अकादमी नहीं है.यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो राज ठाकरे का दिल्ली संस्करण प्रकाशित होने में विलंब नहीं लगेगा.