सोमवार, 3 अगस्त 2009

देखन मां बौरहिया, आवें पांचो पीर

सुलतानपुर मेरा गृह जनपद । भगवान राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश का बसाया हुआ। सन 1094 में तक इसका नाम कुशभवन पुर था। कुतबुद्दीन ऐबक ने सुलतानपुर पर हमला किया और उसके बाद इसका नाम सुल्तानपुर रखा, जो आज तक चला आ रहा है। यह अलग बात है कि हम जैसे कुछ लोग इसे सुलतानपुर कहते हैं। अर्थात सुंदर लताओं से घिरा हुआ (नगर) पुर। एक अति प्राचीन नगर होने के बावजूद सुलतानपुर की सन 1975 के पहले तककोई खास पहचान नहीं थी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने देश में आपात काल घोषित किया, उसी दौरान उनके कनिष्ठ पुत्र संजय गांधी ने सुलतानपुर जनपद की दूसरी लोकसभा सीट अमेठी को अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना। हालांकि वह सन 77 के अपने पहले चुनाव में हार गए। इसके साथ ही सुलतानपुर और अमेठी देश-विदेश में चर्चा का विषय बन गए। संजय गांधी 80 में जीते और उसके बाद से अमेठी उस परिवार का लोकसभा क्षेत्र बन गया। उसके बाद से तो सुलतानपुर और अमेठी को पूरी दुनिया जानने लगी। मेरा आशय आपको सिर्फ सुलतानपुर से परिचित कराना नहीं है। लेकिन जो बात मैं बताना चाहता हूं, उसके लिए सुलतानपुर के बारे में कुछ मूलभूत जानकारी देना आवश्यक था। तराइन के मैदान में मुहम्मद गोरी से पृथ्वीराज चौहान के पराजित हो जाने के बाद उनके परिवार के चार राजकुमार (जो रिश्ते में पृथ्वीराज के भाई थे) भाग निकले। उनका उद्देश्य था कि कुछ दिनों बाद सैन्य शक्ति से लैस होकर फिर गोरी से भिड़ेंगे। वे अज्ञातवास के क्रम में कुशभवन पुर पहुंचे। यहां उस समय भर राजा का शासन था। भर राजा ने उन्हें शरण दी और कुछ रियासतें दे दीं। गोरी के लौट जाने के बाद दिल्ली के तख्त पर बैठे कुतबुद्दीन ऐबक के गुप्तचरों को पृथ्वीराज चौहान के भाग निकले चारो भाइयों और उनके उद्देश्य के बारे में जानकारी थी। सो कुतबुद्दीन ने उनका पता लगाने के लिए गुप्तचरों से कहा। गुप्तचरों की कई टोलियां पूरे देश में निकल पड़ीं। पांच गुप्तचरों की एक टोली सुलतानपुर पहुंची। उल्लेखनीय है कि उसके पहले महमूद गजनवी का आक्रमण देश पर हो चुका था। उसके भांजे सैयद मसूद गाजी को बहराइच में सुहेलदेव के नेतृत्व में हिंदू राजाओं ने पराजित किया था और मार गिराया था। उसकी सेना के कुछ सैनिक जो अक्षम हो गए थे वे यहीं रहने लगे थे और बतौर फकीर भिक्षा मांग कर गुजर करते थे। यह बताने का तात्पर्य यह कि कुछ मुस्लिम इन फकीरों के रूप में उस समय अवध में आ चुके थे। कुशभवन पुर में भी एक मुस्लिम बुढिय़ा रहती थी, जो जन्मी तो किसी हिंदू परिवार में थी लेकिन किसी फकीर से शादी कर मुसलमान हो गई थी। पांचों ने उसी बुढिय़ा की झोपड़ी को अपना ठिकाना बनाया। उसके बाद अपना काम शुरू किया। इस बीच सुलतानपुर के राजा के गुप्तचरों को उनके बारे में जानकारी हो गया। उन्होंने उन पांचों को पकडऩा चाहा। पांचों भागे। लेकिन हिंदू सैनिकों ने उन्हें मार गिराया। इस तरह उनका तो अंत हो गया, लेकिन काफी दिनों तक जब वे दिल्ली नहीं पहुंचे और पृथ्वीराज के चारो भाइयों के बारे में भी कोई पता नहीं चला तो दिल्ली से एक गुप्तचार उन पांचों की खोज में रवाना हुआ। चूंकि यह जानकारी थी कि पांचों कुशभवन पुर गए थे। इसलिए वह सीधा सुलतानपुर पहुंचा। उसने भी बुढिय़ा को तलाश कर लिया। क्योंकि नगर में वही एक मात्र गैर हिंदू थी। उसे बुढिय़ा ने सारी घटना बता दी। उसने दिल्ली लौट कर सारी जानकारी ऐबक को दी। ऐबक ने कुशभवन पुर पर आक्रमण किया। हिंदू राजा को पराजय का सामना करना पड़ा। उसने वहां के सारे क्षत्रियों को उनकी जाति पूछ कर मारना शुरू किया। जो भी अपने को चौहान बताता मौत के घाट उतार दिया जाता। इससे बचने के लिए बहुत से चौहान क्षत्रियों ने खुद को चौहान के बजाय वत्सगोत्री बता दिया। अब वे बजगोती कहे जाते हैं। ऐबक ने कुशभवन पुर का नाम सुल्तानपुर रख दिया। उन पांचों गुप्तचरों का शहीद का दर्जा देकर उनकी मजार बनवाई और उन्हें पीर घोषित कर दिया। सुलतानपुर-अयोध्या मार्ग पर शहर से लगता हुआ गांव पांचों पीरन उन्हीं के नाम पर है। हर साल एक बड़ा मेला लगता है। उसमें बड़ी संख्या में हिंदू भी जाते हैं। अज्ञानतावश। हालांकि उन पांचो पीर की हकीकत बयान करने वाली एक लोकोक्ति सुलतानपुर में बहुत प्रचलित है-देखन मां बौरहिया, आवें पांचो पीर। मतलब देखने में बौरहा( भोला-भाला) लेकिन हकीकत में पांचों पीर जैसा धूर्त। एक बात और पांचों की मजारें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अलग-अलग जगह पर हैं। क्योंकि जब पांचों भागे थे तो अलग-अलग जगह पकड़े और मारे गए थे।

4 टिप्‍पणियां:

रवि धवन ने कहा…

सर जब-जब आपके ब्लॉग पर आया हूँ, कुछ खास तृप्ति हुई है. मगर आज मन थोडा विचलित भी हुआ है. ऐसा भी होता है, हमे ही गुलाम करने और हमारे वीरों के कातिलों की पूजा भी होती है. उम्मीद है आगे भी आप हमे सत्य से रूबरू करवाते रहेंगें.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपने बहुत ही सुंदर जानकारी दी. हम लोग वाकई बिना कुछ सोचे समझे भोले पने मे ही पीर फ़कीरों की चोखट पूजते रहते हैं..बिना ये जाने की हकीकत क्या है? और एक ऐतिहासिक जानकारी भी आपने दी. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

वाह ... जगदीश भाई कमाल का लिखा है | हम हिन्दू पता नहीं किस -किस हत्यारे को पूजते रहेंगे ?

बहराइच मैं भी पीर का मजार ऐसा ही है |

बहुत अच्छा किया हमारी आँखें खोल दी | भविष्य मैं भी ऐसे ही लिखते रहें |

kps gill ने कहा…

guru g namaskar
padkhar accha laga. nai jankaria mili. (aapka mobile no. nahi mil raha hai. please new no. message kar dijiyega. my mobile no. is 09416528411