बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

प्रतिबंध से क्या होगा

चंडीगढ़ में पालिथिन पर भी प्रतिबंध लग गया। बीड़ी सिगरेट पीने पर पहले से ही प्रतिबंध था। हालांकि इसके बावजूद यहां लोग बीड़ी सिगरेट पीते हैं। शायद यही हाल पालिथिन के इस्तेमाल के मामले में भी हो। ऐसा इसलिए क्योंकि पालिथिन का इस्तेमाल लोगों की आदत में शुमार हो चुका है। और आदत जल्दी छूटती नहीं। चाहे बीड़ी-सिगरेट की हो या पालिथिन के इस्तेमाल की। पूरी एक पीढ़ी है जो झोला लेकर चली ही नहीं। चालीस पार के लोग जरूर कभी वयःसंधि के जमाने में थैला लेकर चलते रहे होंगे। लेकिन उनमें यह आदत अरसा पहले ही छूट चुकी है।जाहिर है अब उन्हें जहमत उठानी पड़ेगी।यह बात ठीक है कि यदि पर्यावरण के लिए लोगों को थोड़ी बहुत जहमत उठानी पड़े तो उससे गुरेज नहीं करना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे वाकई पर्यावरण का भला होगा। और अगर पालिथिन इतनी ही हानिकारक है तो पूर्व में इसका प्रचार-प्रसार क्यों किया गया। उद्यिमयों को अनुदान देकर इसकी फैक्ट्रियां लगाने के लिए क्यों प्रोत्साहित किया गया। तब पर्यावरण के बारे में सचेत क्यों नहीं रहा गया। ऐसा तो है नहीं कि पालिथिन में अब कोई नया जहरीला रासायनिक परिवर्तन आ गया हो। यह कहां का न्याय है कि पहले लोगों की आदत बिगाड़ो और फिर उस पर प्रतिबंध लगाओ। दरअसल, जब पालिथिन को बाजार में उतारा गया था न तब दूरदर्शिता दिखाई गई थी और न अब दिखाई जा रही है। यदि उस समय इसके खतरों पर विचार कर लिया गया होता तो आज प्रतिबंध की नौबत ही न आती। क्योंकि तब इसे बाजार में उतारा ही न जाता। खैर, जो हो चुका है उस पर प्रलाप करने से क्या फायदा। लेकिन जो हो रहा है, उसपर विचार जरूरी है। अब पालिथिन के इस्तेमाल से उतना खतरा नहीं है,जितना इसपर प्रतिबंध से लगाने से होगा। पालिथिन पर प्रतिबंध लगाने से न जाने कितने लोग बेरोजगार हो जाएंगे। यह सोचा जाना भी जरूरी है। फैक्ट्री मालिकों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन श्रमिकों का क्या होगा? और क्या इससे वास्तव में प्रदूषण रुकेगा। नहीं। पालिथिन पर प्रतिबंध लगेगा तो उसकी जगह कागज इस्तेमाल किया जाएगा। कागज की खपत बढ़ेगी। इसके लिए जंगल काटे जाएंगे। अखबार पहले से ही पन्ने बढ़ा-बढ़ा कर जंगल काटे जाने में प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। तो, यह तय करना होगा कि जंगल काटे जाने से पर्यावरण को ज्यादा नुकसान होगा या पालिथिन के इस्तेमाल से। इसलिए बेहतर होगा कि पालिथिन पर प्रतिबंध लगाए जाने के बजाय उसके कचरे के निस्तारण के दिशा में प्रयास तेज किए जाएं। प्रयास किए भी जा रहे हैं। परिणाम भी सामने आए हैं। पालिथिन के कचरे से सड़कें और ईंट बनाई जाने लगी हैं। जरूरत इन्हें बढ़ावा देने की है। इससे पालिथिन के कचरे से निजात मिल सकेगी। जंगलों की कटान भी अपेक्षाकृत कम होगी।

4 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

इसलिए बेहतर होगा कि पालिथिन पर प्रतिबंध लगाए जाने के बजाय उसके कचरे के निस्तारण के दिशा में प्रयास तेज किए जाएं।
आपने लाख टके की बात कह दी पंडित जी ! इस तरह ना कोई बेरोजगार होगा और ना पेड़ कटेंगे ! बहुत उम्दा और सटीक बात कही आपने ! धन्यवाद !

भूतनाथ ने कहा…

बहुत सामयीक रचना है ! आभार आपका !

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

पंडितजी बहुत बढीया लेख लिखा आपने ! असल में इस बात की जरुरत है !

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे भाई साहिब कपडे के थेले किस काम आयेगे, पुरे यूरोप मे भी तो लोग कपडे के बने थेले ही तो बरते है, फ़िर हमे क्या दिक्कत है, गलत काम तो हम सब इन यूरोप वालो से सीखते है भाई एक अच्छा काम भी सीख लो, भारत मे यह पालिथिन का उपयोग गलत ढग से होता है, लोगो को इतनी समझ भी नही . इस लिये अगर सरकार कोई काम भुल से अच्छा करने लगे तो उस का साथ दो , उस के रास्ते मे रुकावट मत बनाओ.
धन्यवाद