बुधवार, 22 अक्टूबर 2008
बहुत दुखदायी होता है किसी अपने का चले जाना
रविवार, 19 अक्टूबर 2008
चिट्ठा। इस शब्द की परिभाषा क्या है? ब्लाग की भाषा में यह पोस्ट का हिंदी रूपातंरण है। या फिर हम कह सकते हैं कि यह चिट्ठी का पुल्लिंग है। दोनों बाते सही हैं। लेकिन सदियों से अवध में चिट्ठा शब्द का प्रयोग एक खास तरह की चिट्ठी के लिए किया जाता रहा है। अभी भी किया जाता है। मैं अवध की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैं खुद वहीं का हूं। हो सकता है और भी क्षेत्रों में चिट्ठा का प्रयोग उसी अर्थ में किया जाता हो, जिसकी मैं आपसे चर्चा करने जा रहा हूं। गांवों में जब किसी के यहां कोई समारोह होता है और उसमें बिरादरी-भोज का आयोजन किया जाता है तो बिरादरी के लोगों को न्योता देने के लिए चिट्ठा भेजा जाता है। चिट्ठा की विशेषता यह होती है कि उस पर न तो टिकट लगता है और न ही उसे डाक के जरिये भेजा जाता है। बावजूद इसके जिस दिन यह भेजा जाता है बीसों की मील की दूरी तय कर मात्र दो-तीन घंटों में उसी दिन यथासमय पहुंच जाता है और शाम को लोग भोज में सम्मलित होने के लिए आ जाते हैं।अब थोड़ा इसकी प्रक्रिया के बारे में अवगत हो लें। जिस दिन भोज होता है, सुबह बिरादरी के बुजुर्ग उस घर की चौपाल में एकत्र होते हैं। कहां किस गांव में कितना न्योता भेजना है( मतलब यह कि कितने लोगों को न्योता भेजना है) तय करते हैं। फिर दो पन्नों को बीच से लंबा-लंबा फाड़कर आधा किया जाता है, क्योंकि चारों दिशाओं के लिए चार चिट्ठे तैयार करने होते हैं। चिट्ठा लिखने की शैली निर्थारित है। इसमें या तो जिस गांव में न्योता देना होता है वहां के किसी मानिंद आदमी का नाम लिख कर उसके आगे न्योते की संख्या लिख दी जाती है। या फिर उस गांव के जिन-जिन लोगों को न्योता देना होता है उनके नाम के आगे उन्हें जितना न्योता देना होता है वह लिख दिया जाता है। यदि न्योते के आगे वगैरह लिखा है तो वह व्यक्ति अपने साथ अपने परिवार के अन्य सदस्यों और इष्ट मित्रों को लेकर आने के लिए अधिकृत है। चिट्ठा तैयार हो जाने के बाद यह देखा जाता है कि गांव का कौन से आदमी किस दिशा में जा रहा है। ऐसे चार लोगों को चिट्ठा सौंप दिया जाता है। वह आदमी सबसे पहले पड़ने वाले गांव के किसी व्यक्ति को चिट्ठा सौंप कर अपने काम पर निकल जाता है। फिर जिस आदमी को चिट्टा मिला होता है वह अपने गांव में जिसका-जिसका न्योता होता है उसे सहेजता है और फिर वहां से किसी के हाथ तुरंत अगले गांव के लिए रवाना कर देता है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जबतक अंतिम गांव तक चिट्ठा नहीं पंहुच जाता और यह सब मात्र दो-तीन घंटों में ही हो जाता है। अब कृपया मेरे चिट्ठे पर गौर फरमाएं-
चिट्ठा ब्रह्मभोजजगदीश तिवारी पुत्र कालिका प्रसाद तिवारीगांव तिवारी पुरतिथि २६ नवंबर
गांव ब्लाग पुरश्री पीसी रामपुरिया ११ वगैरहश्री अनुराग शर्मा ११ वगैरहश्री दीपक तिवारी साहब ११ वगैरहश्री योगिंद्र मौद्गिल ११ वगैरहबाबा भूतनाथ ११ वगैरहश्री राज भाटिया ११ वगैरहश्री पवन तिवारी ११ वगैरह
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008
टीम जीते कैसे भी जीते
बुधवार, 8 अक्टूबर 2008
प्रतिबंध से क्या होगा
रविवार, 5 अक्टूबर 2008
फलहीन वृक्ष, संवेदन हीन लोग
शनिवार, 23 अगस्त 2008
अभी समय है चेत जाइए
मंगलवार, 15 जुलाई 2008
बेरहम यादें
शनिवार, 14 जून 2008
कोहरे छंटने लगे संत्रास के
देखना पन्ने बनेंगे एक दिन इतिहास के
धूप दुख की है,मरुथल है जिन्दगी
मर रहें हैं लोग मारे प्यास के
उपवनों में जाइएगा सोच कर
जंतु जहरीले बहुत हैं घास के
प्रतिदान में प्रभात को दे दो दुआ
कोहरे छंटने लगे संत्रास के
दे के दवाएँ सौरभ कोई न लूट ले
हमसफ़र मिलते नहीं विश्वास के
सोमवार, 9 जून 2008
नए रास्ते कहाँ निकलें
यहाँ हर शख्स में इक शख्से दीगरां निकले
वफ़ा की बात लिए हम जहाँ जहाँ निकले
जमीनें तप गईं बगलों से आसमां निकले
ये कौन चाँद के रोज़न से झांकता है हमें
ये किसका चेहरा किताबों के दर्मियां निकले
हजार बार चुकाए हिसाबे दारो रसन
मगर सरों पे वही कर्जे इम्तिहाँ निकले
भटक रही है अंधेरे में जिन्दगी सौरभ
नयी सबील नए रास्ते कहाँ निकले
शुक्रवार, 6 जून 2008
जो लबालब गिलास वाले हैं
हमारे साथ तो मुद्दत से प्यास वाले हैं
अजीब शहर है लोग प्यार करने वाले
हैं मगर सभी ने लिबासों मे नाग पाले हैं
मैं अपने लहू के धब्बे कहाँ तलाश करूँ
तमाम लोग मुक़द्दस लिबास वाले हैं